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Retrived on June 13, 2009
वासना की भेंट चडी विछिप्त महिला, हुई गर्भवती
June 13, 01:55 am (Online Edition)
चतरा। मनुष्य धरती पर सबसे बुद्धिमान माना जाता है। लेकिन कभी-कभी मनुष्य की बुद्धिमानी ऐसे भटक जाती है कि वह दरिन्दों में शुमार होने लगता है। ऐसे ही चतरा में वहशी दरिन्दों की हवस का शिकार बनी है एक विक्षिप्त महिला। इस विक्षिप्त महिला की पीड़ा ने पूरे मानवता को शर्मसार कर डाला है। स्थानीय समाहरणालय के समीप खुले आसमान के नीचे दर्द से कराहती इस विक्षिप्त महिला के साथ इंसान रूपी हैवानों ने हैवानियत का ऐसा खेल खेला, जिसकी कल्पना मात्र से उनके प्रति घृणा और आक्रोश का भाव किसी के मन में उत्पन्न में हो जाता है। आज यह विक्षिप्त गर्भवती है और दरदर की ठोकरें खा रही है। इसकी लाचारी और बेबसी को देखकर लोग रोटी के टुकड़े तो परोस देते है, पर इसकी सहायता को न तो कोई स्वयं सेवी संस्था और न ही जिला प्रशासन आगे आ रहा है। मानव सेवा सबसे बड़ा सेवा है, इसके नाम पर कई स्वयं सेवी संस्थाएं सरकार से धनराशि ले रही है। पर उनका यह धनराशि कहां खर्च हो रहा है, इस विक्षिप्त महिला को देखकर सहजता के साथ अनुमान लगाया जा सकता है। बांग्ला भाषी यह महिला पिछले डेढ़ वषरें से चतरा में देखी जा रही है। अपने साथ बांग्ला भाषा में लिखा एक प्लास्टिक का बैग वह हमेशा रखती है। प्लास्टिक के इस बैग पर बड़ा बाजार वर्द्धमान लिखा हुआ है। जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह विक्षिप्त महिला वर्द्धमान या उसके आसपास के क्षेत्रों की रहने वाली है। वह पूरे दिन शहर में इधर-उधर भटकने के बाद शाम ढलते ही समाहरणालय के आसपास रात में गुजारा करती है। ग्रामोदय चेतना केंद्र की सचिव सविता बनर्जी का कहना है कि पुरुष की अंधी वासना का शिकार हुई है यह महिला। उन्होंने इसके प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक समाज में संवेदनशीलता नहीं आएगी, तब तक इस तरह की घटनाएं होते रहेगी। उन्होंने जिला प्रशासन से इसकी सुरक्षा व उपचार की मांग की है। डा. नंदकिशोर प्रसाद ने कहा कि मनुष्य के भीतर एक चेतना होती है। यही चेतना इंसान और जानवर के फर्क को दर्शाता है। विक्षिप्त महिला के साथ जिस किसी ने भी ऐसा कुकर्म किया है, वह चेतना शून्य व्यक्ति है।
चतरा। मनुष्य धरती पर सबसे बुद्धिमान माना जाता है। लेकिन कभी-कभी मनुष्य की बुद्धिमानी ऐसे भटक जाती है कि वह दरिन्दों में शुमार होने लगता है। ऐसे ही चतरा में वहशी दरिन्दों की हवस का शिकार बनी है एक विक्षिप्त महिला। इस विक्षिप्त महिला की पीड़ा ने पूरे मानवता को शर्मसार कर डाला है। स्थानीय समाहरणालय के समीप खुले आसमान के नीचे दर्द से कराहती इस विक्षिप्त महिला के साथ इंसान रूपी हैवानों ने हैवानियत का ऐसा खेल खेला, जिसकी कल्पना मात्र से उनके प्रति घृणा और आक्रोश का भाव किसी के मन में उत्पन्न में हो जाता है। आज यह विक्षिप्त गर्भवती है और दरदर की ठोकरें खा रही है। इसकी लाचारी और बेबसी को देखकर लोग रोटी के टुकड़े तो परोस देते है, पर इसकी सहायता को न तो कोई स्वयं सेवी संस्था और न ही जिला प्रशासन आगे आ रहा है। मानव सेवा सबसे बड़ा सेवा है, इसके नाम पर कई स्वयं सेवी संस्थाएं सरकार से धनराशि ले रही है। पर उनका यह धनराशि कहां खर्च हो रहा है, इस विक्षिप्त महिला को देखकर सहजता के साथ अनुमान लगाया जा सकता है। बांग्ला भाषी यह महिला पिछले डेढ़ वषरें से चतरा में देखी जा रही है। अपने साथ बांग्ला भाषा में लिखा एक प्लास्टिक का बैग वह हमेशा रखती है। प्लास्टिक के इस बैग पर बड़ा बाजार वर्द्धमान लिखा हुआ है। जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह विक्षिप्त महिला वर्द्धमान या उसके आसपास के क्षेत्रों की रहने वाली है। वह पूरे दिन शहर में इधर-उधर भटकने के बाद शाम ढलते ही समाहरणालय के आसपास रात में गुजारा करती है। ग्रामोदय चेतना केंद्र की सचिव सविता बनर्जी का कहना है कि पुरुष की अंधी वासना का शिकार हुई है यह महिला। उन्होंने इसके प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि जब तक समाज में संवेदनशीलता नहीं आएगी, तब तक इस तरह की घटनाएं होते रहेगी। उन्होंने जिला प्रशासन से इसकी सुरक्षा व उपचार की मांग की है। डा. नंदकिशोर प्रसाद ने कहा कि मनुष्य के भीतर एक चेतना होती है। यही चेतना इंसान और जानवर के फर्क को दर्शाता है। विक्षिप्त महिला के साथ जिस किसी ने भी ऐसा कुकर्म किया है, वह चेतना शून्य व्यक्ति है।
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